डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी अध्ययन पीठ, हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय एवं स्वाबलंबी भारत अभियान के अंतर्गत प्रदेश विश्वविद्यालय के वि...
डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी अध्ययन पीठ, हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय एवं स्वाबलंबी भारत अभियान के अंतर्गत प्रदेश विश्वविद्यालय के विधि विभाग के सेमिनार हॉल में एक दिवसीय संगोष्ठी रोज़गार इच्छुक से रोज़गार सृजक की ओर का आयोजन किया गया | इस एक दिवसीय संगोष्ठी में हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. सत प्रकाश बंसल ने मुख्य अतिथि के रूप में शिरकत की तथा उनके साथ मुख्य वक्ता के रूप में सतीश कुमार ( अखिल भारतीय सह संगठक, स्वदेशी जागरण मंच ) उपस्थित रहे | इस संगोष्ठी में प्रो. जय देव ( प्रांत समन्वयक, स्वाबलंबी भारत अभियान ), प्रो. राम शर्मा ( अध्यक्ष, डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी अध्ययन पीठ ) एवं प्रो. कुलभूषण चंदेल (अधिष्ठाता अध्ययन ) भी मुख्य रूप से उपस्थित रहे |
स्वावलंबी भारत अभियान के प्रांत समन्वयक प्रो. जय देव ने संगोष्ठी में उपस्थित श्रोताओं को सम्बोधित करते हुए कहा कि हमें स्वदेशी वस्तुओं के इस्तेमाल के लिए लोगों में जागरूकता फैलानी चाहिए। उन्होंने कहा है कि हमें ' स्व ' पर आधारित तंत्र पर निर्भर रहना सीखना होगा। कोरोना संकट हमारे लिए स्वावलंबन का संदेश लेकर आया है। जीवन की बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए हमें अपने पैरों पर खड़ा होना होगा।आज भारत के युवाओं में यह आत्मविश्वास जागृत करने की आवश्यकता है कि वे कुछ भी कर सकते हैं। उनके अंदर दुनिया के सामने उदाहरण प्रस्तुत करने का सामर्थ्य मौजूद है। उन्होंने कहा कि स्वदेशी का मतलब यह नहीं है कि हम दूसरे देशों के साथ संबंध नहीं रखें बल्कि यह है कि हम दूसरे देशों के साथ अपनी शर्तों पर व्यापार करें।संगठित और सशक्त भारत के निर्माण हेतु हमें आत्मनिर्भर भारत बनाना होगा।
सुनील दत्त नामक मशरूम उद्यमी ने कहा कि हम यदि लगातार निष्काम भाव से प्रत्यनशील रहते है तो अवश्य ही हमें सफलता मिलती है और समाज उद्यमशील बनता है। मशरूम उत्पादन के माध्यम से स्वंय स्वावलम्बी हो आज लगभग 1000 से अधिक लोगों को रोज़गार प्रदान कर रहे हैं |
कार्यक्रम में उपस्थित श्रोताओं को सम्बोधित करते हुए मुख्य अतिथि आचार्य सत प्रकाश बंसल जी ने कहा कि हमारे समाज में कई ऐसे उदाहरण है जिन्होंने जमीन से शुरुआत कर ऊंचाई को छुआ है और उन्होंने समाज को अपने अनुभव से एक दिशा दी है। सृजनशील लोगों की नई सोच ने पूरे विश्व में नए-नए क्षेत्र में रोजगार उपलब्ध कराया है। हमें भी अपने युवाओं को चिंतनशील बनाने की आवश्यकता है जो कि नए सोच को विकसित करके हम भारत को नए युग में ला सकते है। नौकरियों से देश नहीं बनता है। देश को बनाने के लिए स्वरोजगार की आवश्यकता होती है।स्वावलंबी भारत अभियान निश्चित ही देश को स्वरोजगार प्राप्ति की और ले जायेगा।
कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के तौर पर उपस्थित सतीश कुमार ने सम्बोधित करते हुए कहा कि स्वालंबन भारत देश में इस समय की बड़ी मांग है। भारत देश कई वर्षों पहले भी स्वावलंबन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता था तथा पूरे विश्व में उत्पादन का एक बड़ा भाग भारत से होकर जाता था, लेकिन कुछ काल खंडों में हमने वह परंपराएं भुला दी हैं। पूरे विश्व में कई देश ऐसे हैं जो अपने यहां पूरे विश्व का उत्पादन का बहुत बड़ा हिस्सा अपने देश से देते हैं यदि भारत का युवा एकजुट होकर धैर्य और साहस के साथ अपने-अपने क्षेत्रों के अनुसार स्वरोजगार व उत्पादन में लग जाए तो फिर पुनः हम पूरे विश्व को उत्पादन का बहुत बड़ा भाग हम भारत से दे सकते हैं।
पिछले कुछ दशकों में भारत में बेरोजगारी की समस्या गंभीर हो गई है। इस समस्या को सरकारी नीतियों में से किसी एक के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है,यह स्वतंत्र भारत में क्रमिक सरकारों द्वारा अपनाई गई गलत निर्देशित आर्थिक नीतियों का संचयी प्रभाव है | उन्होंने आगे कहा कि पिछले 200 वर्षों से भारतीय लोगों की मानसिकता लॉर्ड मैकाले की नीतियों के कारण स्वरोजगारपरक न होकर नौकरी प्राप्त करने की रही है। आज हमें इस मानसिकता को परिवर्तित करने की जरूरत है तभी हम 2030 तक 10 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बन सकेंगे और भारत के प्रत्येक नागरिक को रोजगार उपलब्ध करा सकेंगे। उन्होंने आगे कहा कि वर्तमान में ऐसे परिदृष्य बनाने की आवश्कता है कि आज का युवा स्वयं अपना रोजगार बिना किसी बाधा के शुरू कर सके और भारत सभी क्षेत्र में आत्मनिर्भर बन सके। यूक्रेन और रूस के युद्ध और कोरोना काल के बाद यह पहली आवश्कता हो गई है कि हम पूर्णरूप से आत्मनिर्भर बनें।
उन्होंने कहा कि जनसंख्या वृद्धि की समस्या को भी हमें एक चुनौती के तौर पर लेना चाहिए।यह कोई समस्या नहीं है, हमें इस समस्या को इस तरह से देखना चाहिए कि हमारे पास काम करने के लिए इतने हाथ हैं।जब मनुष्य में आत्मविश्वास पैदा हो जाता है तो वह दुनिया के सामने उदाहरण पेश कर सकता है। भारत की मूल आवश्यकताओं के लिए हमें प्रयत्न करना चाहिए। स्वदेशी का मतलब यह नहीं है कि हम दूसरे देशों के साथ सम्बंध नहीं रखेंगे. हम दूसरे देशों के साथ व्यापार रखेंगे, अपने सम्बंध रखेंगे. लेकिन अपनी शर्तों पर, अपने पैरों पर खड़े होकर. जीवन की बुनियादी जरुरतों के लिए दूसरों के सामने हाथ पसारने की बजाय हमें आत्मनिर्भर बनना होगा, अपने पैरों पर खड़ा होना होगा। हमें परिश्रमी भारत चाहिए, हम आलसी भारत से आत्मनिर्भर नहीं बन सकते. नई पीढ़ी को परिश्रम करने, कठिनाइयों का सामना करने के लिए प्रेरित करना होगा।
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