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सीटू का 14वां राज्य सम्मेलन मण्डी में सम्पन्न, विभिन्न मुद्दों पर की गई चर्चा।

सीटू का 14वां राज्य सम्मेलन रविवार को मंडी में सम्पन्न हुआ। इस सम्मेलन ने ओपीएस बहाली,आउटसोर्स कर्मियों को सरकारी कर्मचारी बनाने...

सीटू का 14वां राज्य सम्मेलन रविवार को मंडी में सम्पन्न हुआ। इस सम्मेलन ने ओपीएस बहाली,आउटसोर्स कर्मियों को सरकारी कर्मचारी बनाने,आंगनबाड़ी को प्री प्राइमरी में नियुक्ति देने,मनरेगा व निर्माण मजदूरों की श्रमिक कल्याण बोर्ड से मिलने वाली सुविधाओं को बदस्तूर जारी रखने,मजदूरों का न्यूनतम वेतन 26 हज़ार रुपये करने,वेतन को महंगाई सूचकांक के साथ जोड़ने,स्कीम वर्करज़ को नियमित कर्मचारी का दर्जा देने व चार लेबर कोड़ों को निरस्त करने आदि मांगों को लेकर आंदोलन तेज करने का निर्णय लिया।

सीटू प्रदेशाध्यक्ष विजेंद्र मेहरा व महासचिव प्रेम गौतम ने प्रदेश के मजदूरों व कर्मचारियों से आह्वान किया है कि प्रदेश की मजदूर व कर्मचारी विरोधी भाजपा सरकार को आगामी विधानसभा चुनावों में करारी शिकस्त दें व भाजपा को सत्ता से बाहर करें। उन्होंने कहा कि कोरोना काल में मजदूरों पर अत्याचारी कानून थोपने वाली प्रदेश सरकार को सत्ता से बाहर करना बेहद जरूरी है। कोरोना काल में जहां केंद्र सरकार ने मजदूर विरोधी चार लेबर कोड बनाए वहीं प्रदेश की भाजपा सरकार ने मजदूरों के खिलाफ तीन कानून बनाए। इन तीन कानूनों ने उद्योगों में कार्यरत मजदूरों को बंधुआ मजदूरी की ओर धकेलने का कार्य किया। उनके नियमित रोज़गार की जगह फिक्स टर्म रोज़गार को लागू किया गया। उनके काम के घण्टों को 8 से बढ़ाकर 12 घण्टे करने की साज़िश की गई। ठेका मजदूरों को श्रम कानूनों के दायरे से बाहर करने की पटकथा लिखी गई । उनकी रोज़गार की सुरक्षा को खत्म करने का प्रावधान किया गया। ईज ऑफ डूइंग बिजनेस के नाम से प्रदेश सरकार ने मजदूर वर्ग के अधिकारों की छीनने की पुरज़ोर कोशिश की। इस तरह वर्तमान भाजपा सरकार इतिहास की सबसे मजदूर विरोधी सरकार साबित हुई जिसने मानवता पर आए सबसे बड़े संकट कोरोना काल को भी पूंजीपतियों व उद्योगपतियों की मुनाफाखोरी तथा मजदूरों की लूट के अवसर में तब्दील कर दिया। 

यह सरकार पूरी तरह से कर्मचारी विरोधी साबित हुई। ओपीएस बहाली को लेकर शिमला में किए गए आंदोलन को इस सरकार ने बलपूर्वक दबाने की कोशिश की। कर्मचारियों पर मुकद्दमे दर्ज किए गए जिसमें महिलाओं को भी नहीं बख्शा गया। कर्मचारियों के जबरन तबादले किए गए। कर्मचारियों की ओपीएस बहाली नहीं की गई । कर्मचारियों को छठे वेतन आयोग के लाभ नहीं दिए गए। उनकी वेतन विसंगतियों को दूर नहीं किया गया। नियमित भर्ती के बजाए आउटसोर्स भर्तियां करके कर्मचारियों का शोषण किया गया। आउटसोर्स कर्मचारियों को निगम अथवा कम्पनी में मर्ज करने की घोषणा करके उनके नियमितीकरण पर रोड़ा अटकाया गया। तबादलों के नाम पर कर्मचारियों का दमन किया गया। भ्रष्टाचार इस कदर रहा कि प्रदेश में तबादला उद्योग स्थापित हो गया। इसलिए मजदूरों व कर्मचारियों को मिलकर इतिहास की सबसे निकम्मी मजदूर व कर्मचारी विरोधी इस सरकार को सत्ता से बेदखल करना चाहिए।

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