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देवताओं की विदाई के साथ संपन्न हुई धोगी की "बूढ़ी दिवाली"।

देशभर में जहां दिवाली पर्व धूमधाम से संपन्न हो चुका है वहीं हिमाचल प्रदेश के कुछ क्षेत्र ऐसे भी हैं जहां दिवाली के ठीक एक माह बा...

देशभर में जहां दिवाली पर्व धूमधाम से संपन्न हो चुका है वहीं हिमाचल प्रदेश के कुछ क्षेत्र ऐसे भी हैं जहां दिवाली के ठीक एक माह बाद धूमधाम से बूढ़ी दीवाली मनाई जाती है। इसी कड़ी में आनी के धोगी में यह पर्व क्षेत्र के आराध्य देवता शमशरी महादेव के सम्मान में मनाया जाता है। दो दिवसीय इस पर्व में पुरातन संस्कृति की खूब झलक देखने को मिलती है। एक तरफ जहां प्रकाशोत्सव के प्रतीक के तौर पर जहां यहाँ पर दीये की जगह मशालें जलाई जाती हैं वहीं, पारंपरिक वाद्ययंत्रों की थाप पर हर कोई झूमता हुआ नज़र आता है । हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी दिवाली के एक माह बाद इस बार 23 व 24 नवंबर को धोगी में प्राचीन बूढ़ी दीवाली मनाई गई। दो दिवसीय इस पर्व के अंतिम दिन वीरवार को क्षेत्र के आराध्य देवता शमशरी महादेव और टौणा नाग की भावपूर्ण विदाई के साथ धोगी बूढ़ी दिवाली संपन्न हुई।

इस पर्व के समापन से पूर्व जहां लोग खूब झूमें वहीं, देवताओं की विदाई के समय लोग भावुक भी हुए।
प्राचीन रीति-रिवाजों अनुसार रात्रि के समय गांव के सैकड़ों लोगों ने वाद्य यंत्रों की धुनों पर मशाल जलाकर प्राचीन गीत, जतियां गाकर मंदिर
की परिक्रमा करके समाज में फैली अंधकार रूपी बुराइयों को प्रकाश रूपी दुर्जय शस्त्र से दूर करने का संदेश देकर सुख शांति की कामना की.

  दिन को मनमोहक नाटी ने सबका मन मोहा। पारम्परिक वेश-भूषा में सजकर लढागी नृत्य दल ने महिला मण्डल सहित खूब रौनक लगाई ।


इसके अलावा दोपहर के समय मुंजी के घास से बना  बांड को नचाया गया और उसके बाद उस बांड को काटा जाता है और उस बांड को लोग अपने अपने घर ले जाते हैं।  विशेष तौर से बनाई गई मूंजी घास के रस्से से दोनों दल एक-दूसरे के साथ शक्ति प्रदर्शन करके देव-दानव के भायवह युद्ध और समुद्र मंथन की याद दिलाता है।


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