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धर्मशाला: मुआवजा न देने पर पंजाब रोडवेज की दो बसें जब्त

धर्मशाला: मुआवजा न देने पर पंजाब रोडवेज की दो बसें जब्त धर्मशाला। कांगड़ा जिले के धर्मशाला में अदालत के आदेश पर पंजाब रोडवेज की दो बसें जब्त...

धर्मशाला: मुआवजा न देने पर पंजाब रोडवेज की दो बसें जब्त



धर्मशाला। कांगड़ा जिले के धर्मशाला में अदालत के आदेश पर पंजाब रोडवेज की दो बसें जब्त कर ली गई हैं। इस सख्त कार्रवाई का मुख्य कारण दुर्घटना के शिकार पीड़ित परिवारों को उचित मुआवजा न दिया जाना है। न्यायालय ने पंजाब रोडवेज द्वारा लगातार मुआवजा न दिए जाने पर यह कठोर कदम उठाया है, जो कि न्यायिक व्यवस्था में अस्वीकार्य है।

मामले का विवरण

कांगड़ा जिला और सत्र न्यायाधीश राजीव बाली की धर्मशाला अदालत ने इस मामले में पंजाब रोडवेज की दो बसों को जब्त करने के आदेश दिए। यह कार्रवाई मोटर वाहन अधिनियम के अंतर्गत की गई है, जहां कोर्ट ने पीड़ित परिवारों को मुआवजा न देने पर बार-बार की जा रही अवहेलना को गंभीरता से लिया। शुक्रवार को इस आदेश का पालन करते हुए पुलिस ने अदालत के कर्मचारियों की मौजूदगी में धर्मशाला में पंजाब रोडवेज की बसों को कब्जे में लिया।

दुर्घटनाओं का विवरण

यह मामला दो अलग-अलग दुर्घटनाओं से संबंधित है। पहला मामला वर्ष 2012 का है, जबकि दूसरा मामला 2017 में दर्ज हुआ था। दोनों मामलों में संबंधित पीड़ित परिवारों को पंजाब रोडवेज की ओर से मुआवजा नहीं दिया गया। ये मामले पहले अदालत में पेश हुए थे, और जब अदालत ने बार-बार के समन के बावजूद कोई सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं देखी, तो मामला निष्पादन याचिका तक पहुंच गया।

पहली दुर्घटना 2012 में हुई थी, जिसमें एक व्यक्ति की मौत हो गई थी और उसके परिवार को मुआवजे के रूप में एक निश्चित राशि की मांग की गई थी। कोर्ट ने उस समय पंजाब रोडवेज को पीड़ित परिवार को मुआवजा देने का आदेश दिया था, लेकिन इस आदेश की अनदेखी की गई। इसी तरह 2017 में दूसरी दुर्घटना में भी एक व्यक्ति की जान गई, और फिर से पीड़ित परिवार को मुआवजा नहीं दिया गया।

न्यायिक आदेश और कार्रवाई

कई सालों तक मुआवजा न दिए जाने के बाद अदालत ने निष्पादन याचिका के तहत सख्त आदेश दिए। कोर्ट के बार-बार समन के बावजूद पंजाब रोडवेज ने किसी प्रकार की संज्ञान नहीं ली, जिससे न्यायालय को मजबूरन उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई करनी पड़ी। धर्मशाला न्यायालय ने आदेश दिए कि मुआवजा न देने पर पंजाब सरकार से लगभग 12 से 14 लाख रुपये की रिकवरी करने के लिए उनकी बसों को जब्त किया जाए। यह न्यायिक प्रक्रिया का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो दिखाता है कि कानून की नजर में कोई भी संस्था या व्यक्ति बरी नहीं है। 

पुलिस की कार्रवाई

धर्मशाला में इस आदेश के तहत पुलिस ने तत्काल कार्रवाई की। एसपी कांगड़ा शालिनी अग्निहोत्री ने बताया कि न्यायालय के आदेशों के तहत पंजाब रोडवेज की दो बसों को कब्जे में लिया गया है। पुलिस ने पूरी सतर्कता के साथ इस कार्रवाई को अंजाम दिया। अदालत के कर्मचारियों की उपस्थिति में यह प्रक्रिया पूरी की गई, जिससे न्यायालय के आदेशों का पालन सुनिश्चित हो सके।

प्रभाव और भविष्य की संभावनाएं

इस मामले का प्रभाव काफी व्यापक हो सकता है। न्यायालय द्वारा इस प्रकार की सख्त कार्रवाई अन्य मामलों में भी एक नजीर बनेगी, जहां सरकारी विभाग या अन्य संस्थाएं मुआवजा देने में टालमटोल करती हैं। इससे भविष्य में ऐसी घटनाओं में मुआवजा देने की प्रक्रिया में तेजी आएगी, और पीड़ित परिवारों को समय पर न्याय मिल सकेगा। 

न्यायालय की सख्ती

यह मामला न्यायालय की सख्ती को दर्शाता है, जहां उन्होंने पीड़ित परिवारों को न्याय दिलाने के लिए हर संभव प्रयास किया। न्यायालय के आदेश के बावजूद यदि कोई संस्था मुआवजा देने में लापरवाही करती है, तो उसके खिलाफ सख्त कदम उठाए जा सकते हैं।

इस कार्रवाई से स्पष्ट होता है कि न्यायालय किसी भी प्रकार की लापरवाही को बर्दाश्त नहीं करेगा, चाहे वह सरकारी विभाग ही क्यों न हो। पंजाब रोडवेज के खिलाफ उठाया गया यह कदम अन्य संस्थानों के लिए भी एक संदेश है कि कानून की अवहेलना करने पर उन्हें गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं।

न्यायिक प्रक्रिया का महत्व

यह घटना इस बात की ओर भी इशारा करती है कि न्यायिक प्रक्रिया का पालन करना कितना महत्वपूर्ण है। यदि आदेशों का पालन नहीं किया जाता है, तो इसका परिणाम गंभीर हो सकता है। अदालत ने यह स्पष्ट संदेश दिया है कि वह अपने आदेशों की अवहेलना बर्दाश्त नहीं करेगी और दोषियों के खिलाफ कठोर कार्रवाई की जाएगी।

धर्मशाला की इस घटना ने न केवल मुआवजा मामलों में न्याय की आवश्यकता को फिर से उजागर किया है, बल्कि यह भी दिखाया है कि न्यायिक आदेशों की अवहेलना पर कठोर कदम उठाए जा सकते हैं। यह उन सभी के लिए एक चेतावनी है जो कानून और न्याय के प्रति अपनी जिम्मेदारी को नजरअंदाज करते हैं। पंजाब रोडवेज की बसों की जब्ती इस बात का प्रमाण है कि न्यायालय अपने आदेशों का पालन सुनिश्चित करने के लिए किसी भी हद तक जा सकता है।

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