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कविता: आज भी जंग से नहीं डरता

 शीर्षक: आज भी जंग से नहीं डरता  मैं ना जंग से डरता हूँ  ना दहशत से डरता हूँ  कल भी काश्मीर पे मरता था,आज भी मरता हूँ ।       कपिल की कप्तान...

 शीर्षक: आज भी जंग से नहीं डरता 

मैं ना जंग से डरता हूँ 

ना दहशत से डरता हूँ 

कल भी काश्मीर पे मरता था,आज भी मरता हूँ ।      

कपिल की कप्तानी में 

देश ने जीता था कप,तो 

देश के मुस्लिम भाइयों ने भी जमकर मनाया था जश्न।

याद है मुझे भागलपुर का दंगा 

मेरी दाढ़ी बढ़ी हुई थी 

जमालपुर से भागलपुर जा रहा था,रेडियो प्रोग्राम देने नाथनगर रेलवे स्टेशन पर 

कुछ हिन्दू भाई 

रेल डिब्बे के आसपास 

मंडरा रहे थे।

मैंने तपाक से पूछा 

क्या जानना चाहते हो?


मैं हिन्दू हूं या मुसलमान 

मेरी तरफ अजीब नजर से देखा

कहा मैंने,दोस्तों 

ना मैं हिन्दू हूँ 

ना मुसलमान 

मै अपने आप मैं हूँ 

पूरा हिन्दुस्तान।

 तुम लोग प्यार करते हो 

मुसलमान को 

या फिर हिन्दुस्तान को? 

सभी अबाक चुप्पी साधे 

देखते रह गए मुझे।

तब कहा मैंने 

मैं आजाद वतन का पंछी हूँ।

नाम है मेरा चंदन आजाद।

फुरसत मिला 

तो कभी बताऊंगा 

देश तो आजाद हुआ 

मगर हम आज भी गुलाम हैं,अपनी मानसिकता के।


(पारो शैवालिनी की कलम से)



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