सभी अधिकारियों, स्कूलों, सांस्कृतिक संगठनों और आयोजनकर्ताओं को दिशा-निर्देशों का कड़ाई से पालन करना होगा सुनिश्चित आनी, 16 मई। जिला प्रशासन ...
सभी अधिकारियों, स्कूलों, सांस्कृतिक संगठनों और आयोजनकर्ताओं को दिशा-निर्देशों का कड़ाई से पालन करना होगा सुनिश्चित
आनी, 16 मई।
जिला प्रशासन कुल्लू द्वारा भारत सरकार एवं हिमाचल प्रदेश सरकार के निर्देशानुसार श्री गुरु गोबिंद सिंह जी के साहिबजादों और उनके परिवार के सदस्यों के मंचीय चित्रण पर रोक संबंधी मानक संचालन प्रक्रिया (SOP) को सख्ती से लागू किया जा रहा है।
इस संबंध में उपायुक्त कुल्लू ने सभी उपमंडल दंडाधिकारी सहित अन्य विभागों के संबंधित अधिकारियों को निर्देश जारी किए हैं।
जारी निर्देशों के अनुसार सिख धर्म एवं "सिख रहत मर्यादा" के अनुसार, किसी भी व्यक्ति को श्री गुरु गोबिंद सिंह जी, उनके परिवार अथवा साहिबजादों के रूप में मंच, नाटक, या किसी भी सार्वजनिक प्रदर्शन में अभिनय करना प्रतिबंधित और अनुचित माना गया है। यह देखा गया है कि विभिन्न स्कूलों और आयोजनों में छोटे बच्चे साहिबजादों की भूमिका निभाते हुए दृश्य प्रस्तुत करते हैं, जिसमें उन्हें दीवार में चिनवाने जैसी घटनाएं भी दिखाई जाती हैं। ऐसे चित्रण सिख परंपराओं के विरुद्ध हैं।
इसके चलते किसी भी व्यक्ति द्वारा सिख गुरुओं या उनके परिवार के सदस्यों की भूमिका निभाना और उनकी पूजा करना सख्त वर्जित और अपमानजनक माना जाएगा। नाटक, ड्रामा, या अन्य किसी भी प्रदर्शन में सिख गुरुओं एवं उनके परिवार के सदस्यों का मंचन प्रतिबंधित रहेगा। वे किसी भी नाटक या स्टेज प्ले का हिस्सा नहीं बन सकते। बच्चों को भी साहिबजादों की पोशाक पहनाना अथवा उनका अभिनय करवाना सिख आचार संहिता के विरुद्ध है। सिख गुरुओं और उनके परिवार के सदस्यों की महिमा केवल लेख या मौखिक रूप में वर्णित की जा सकती है। उनका इतिहास केवल एनिमेशन के माध्यम से दर्शाया जा सकता है, अभिनय द्वारा नहीं दर्शाया जाएगा।
सिख इतिहास के अनुसार, साहिबजादा ज़ोरावर सिंह और साहिबजादा फतेह सिंह, जो श्री गुरु गोबिंद सिंह जी के सुपुत्र थे, वर्ष 1704 में सिरहिंद (पंजाब) में ज़बरदस्ती दीवार में चिनवा दिए गए थे। भारत सरकार हर वर्ष 26 दिसंबर को वीर बाल दिवस के रूप में उनकी महान शहादत को समर्पित करती है।
मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) यह सुनिश्चित करती है कि सिखों की रहत मर्यादा का पालन करते हुए साहिबजादों के बलिदान का सम्मान हो।
इस संबंध में सभी अधिकारियों, स्कूलों, सांस्कृतिक संगठनों और आयोजनकर्ताओं को उपरोक्त दिशा-निर्देशों का कड़ाई से पालन सुनिश्चित करना होगा। कोई भी ऐसा मंचन न किया जाए जो इन पवित्र ऐतिहासिक चरित्रों का अनादर करे।
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