हिमाचल प्रदेश की लोकसंस्कृति को अपनी मधुर आवाज़ से जीवंत करने वाले प्रसिद्ध लोकगायक इंद्रजीत को देहरादून में आयोजित एक्सीलेंस आइकॉनिक अवार...
हिमाचल प्रदेश की लोकसंस्कृति को अपनी मधुर आवाज़ से जीवंत करने वाले प्रसिद्ध लोकगायक इंद्रजीत को देहरादून में आयोजित एक्सीलेंस आइकॉनिक अवार्ड 2025 के तहत 'हिमाचल रतन सम्मान' से नवाजा गया। यह सम्मान उन्हें बॉलीवुड अभिनेत्री ईशा देओल के हाथों प्रदान किया गया।
इस अवसर पर इंद्रजीत ने यह अवार्ड समस्त हिमाचलवासियों और अपने चाहने वालों को समर्पित करते हुए कहा कि, “यह सम्मान मेरा नहीं, हिमाचल की लोकसंस्कृति का है।”
गांव से वैश्विक मंच तक
कुल्लू-मनाली की वादियों में बसे छोटे से गांव ‘दोगरी’ से निकलकर इंद्रजीत ने न केवल अपनी पहचान बनाई, बल्कि हिमाचल की मिट्टी, बोली और संस्कृति को वैश्विक मंच तक पहुँचाया।
बचपन से ही संगीत में रुचि रखने वाले इंद्रजीत के पास न कोई गुरु था, न ही संसाधन। मात्र 16 वर्ष की उम्र में उन्होंने अपने लिखे और स्वरबद्ध किए गए 10 गीतों की पहली एलबम ‘दिल का क्या कसूर’ लॉन्च की थी, वह भी उस दौर में जब डिजिटल प्लेटफॉर्म्स का चलन नहीं था।
'हाड़े मेरे मामुआ' से मिली पहचान
2016 में आए उनके गीत 'हाड़े मेरे मामुआ' ने हिमाचल के हर घर में उन्हें लोकप्रिय बना दिया। इसके बाद 'लाड़ी शाऊणी', 'पाखली माणू', 'बुधुआ मामा' और 'साजा लागा माघे रा' जैसे गीतों ने करोड़ों दर्शकों के दिलों में जगह बना ली।
सामाजिक संदेश भी गीतों में
इंद्रजीत के गीतों में सिर्फ मनोरंजन नहीं, समाज के प्रति एक गहरी जिम्मेदारी भी दिखती है। ‘अठारह करडू’ जैसे गीत जहां देव संस्कृति को समर्पित हैं, वहीं ‘मता केरदे नशा’ जैसे गीत युवाओं को नशे से दूर रहने की प्रेरणा देते हैं।
वीरभद्र सिंह को भी कर दिया भावुक
इंद्रजीत द्वारा हिमाचल के पूर्व मुख्यमंत्री राजा वीरभद्र सिंह पर गाया गया गीत इतना भावनात्मक था कि स्वयं वीरभद्र सिंह की आंखें भी नम हो गई थीं।
100 से अधिक गीत और हजारों दिलों की धड़कन
अब तक 100 से अधिक लोकगीतों में अपनी आवाज़ दे चुके इंद्रजीत देश-विदेश में कई मंचों पर प्रस्तुति दे चुके हैं। वे आज सिर्फ एक गायक नहीं, बल्कि एक मिशन हैं — हिमाचल की लोकसंस्कृति को सहेजने और नई पीढ़ी तक पहुंचाने का।
युवा पीढ़ी के लिए मिसाल
इस सम्मान के साथ ही इंद्रजीत आज की युवा पीढ़ी के लिए एक प्रेरणा बन गए हैं — यह संदेश देते हुए कि अगर आप अपनी जड़ों से जुड़े रहो, तो आप किसी भी ऊंचाई तक पहुंच सकते हो।
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