कविता शीर्षक : Very Personal,Good कवि : पारो शैवलिनी चित्तरंजन की शान है विराज रेल कारखाने का आन है विराज काम औजार से रेल बनाना है रे...
कविता
शीर्षक : Very Personal,Good
कवि : पारो शैवलिनी
चित्तरंजन की शान है विराज
रेल कारखाने का आन है विराज
काम औजार से रेल बनाना है
रेल के एक-एक पूर्जे को एक-दूसरे से जोड़ना है
ललक है तो केवल अभिनय का
कला है लिखने का नाटक
रचते हैं गीत भी बंगला में
मील का पत्थर है उनका अभिनय
सहनायक से नायक तक का सफर
हर कोण से मचा देते हैं तहलका
ना कभी नहीं करते
टकटकी बांधे देखते हैं
देखकर सराहते हैं
कलाकारों के अभिनय को
कल किसने देखा है,कहा करते हैं अजीजो से रम जाते हैं,यारों की यारी में
मीस-विहेव कभी नहीं करते, ना विराट कलाकारों से,ना अदना अदाकारों से
राज की बात कहने से भी डरते हैं
जब मिलते हैं,खुलके मिलते हैं
गंगा वोट-हाउस में
गुल खिलाते हैं चिल्ड्रेन पार्क के सामने नेता जी उद्यान में
लीजिये,यही तो है चित्तरंजन के आन-बान शान,खुद में है पूरा हिन्दुस्तान,बंगला ही नहीं हिन्दी और अंग्रेजी पर वैसे ही है कमाण्ड
जैसे स्वर्ग से धरती तक
धरती से गगन तक फैला हुआ है,इनके अभिनय का साम्राज्य
इनकी लेखनी,अभिनय,चेहरे का एक्सप्रेशन,बोलती हुई आँखे
सब एक साथ एक्सपोज होने होने लगतै हैं जब आवाज़ आती है कैमरा और एक्शन का तो सारा कुछ समेट लेते हैं
अपने आलिंगन में
कभी लाल(सीपीएम),कभी हरा(टीएमसी)तो कभी
गेरूआ(बीजेपी) रंग को अपने अभिनय में
यही तो परिचय है इनका
जबभी मिलते हैं
जहाँ मिलते हैं,कहते हैं---,मैं धुआँ नहीं उड़ाता ना उड़ाने दूँगा किसी को,ना पीता हूँ
ना पीने दूँगा किसी को
मगर,एक है उसका
परम मित्र (पीएम)
बिहार का बिहारी,बंगाल का बंगाली सभी कहते हैं उसे पीपी
एक विराज ही है
जो कहते हैं उसे
नो नेभर पी
हाथ जोड़ता है पीपी
पाँव पकड़ता है पीपी
तब पिघलता है VG
साथ में उड़ाता है धुआं
और तब गाता है पीपी
" मैं जिन्दगी का साथ
निभाता चला गया
हर फिक्र को धुएं में उड़ाता चला गया "
देव साहब की तरह
पीपी शराबी नहीं
अमीर नहीं गरीब है पीपी,ना ज्वेलथीफ है ना ही शरीफ है पीपी
शरीफ-बदमाश जरूर है पीपी
पीपी है तो पूरा पागल
दीवाना,चार सौ बीस
मगर,VG के अभिनय का
VG + PP = VP GP यानि
VERY PERSONAL
GOOD PERSON
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