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तीर्थन घाटी के बठाहड में तीन दिवसीय शनैच मेला धूमधाम से मनाया, नाटी, रात्रि सांस्कृतिक कार्यक्रम और महिला रस्साकसी रहे मुख्य आकर्षण

 कुल्लू : जिला कुल्लू उपमंडल बंजार की तीर्थन घाटी के बठाहड़ में हर वर्ष की भांति 1 से 3 अगस्त तक देवता विष्णु नारायण के सम्मान में मनाए जाने...

 कुल्लू : जिला कुल्लू उपमंडल बंजार की तीर्थन घाटी के बठाहड़ में हर वर्ष की भांति 1 से 3 अगस्त तक देवता विष्णु नारायण के सम्मान में मनाए जाने वाले शनैच मेले का धूमधाम से आयोजन किया गया, जिसका आज समापन हो गया है। मेले में शामिल सभी देवता आज अपने अपने मूल स्थानों को वापिस लौटे हैं। 


गौरतलब है कि हर वर्ष की भांति मनाए जाने वाले इस मेले में पहले तीन दिन सामुहिक नाटी, रात्रि सांस्कृतिक कार्यक्रम और महिला रस्साकसी का आयोजन होता है। बाकी दो दिनों तक देवता विष्णु नारायण की प्राचीनतम परम्पराओं का निर्वहन किया जाता है। इस बार चिपनी के देवता पांच वीर, घलियाड के देवता वीर और देवता चलडू ने भी शिरकत करके इस मेले की शोभा बढ़ाई है। इस मेले का आगाज ग्राम पंचायत मशीयार की प्रधान शांता देवी ने किया जबकि समापन अवसर पर सेना से सेवानिवृत्त कैप्टन भगत सिंह बतौर मुख्य अतिथि उपस्थित रहे।

देवता विष्णु नारायण मेला कमेटी के अध्यक्ष एवं ग्राम पंचायत मशीयार के उपप्रधान राजवीर सिंह ने जानकारी देते हुए बताया कि हर वर्ष की भांति इस बार भी शनैच मेला बड़े हर्षोल्लास एवं धुमधाम से मनाया गया है। इस दौरान दिन के समय सामुहिक नाटी, महिला रस्साकसी तथा रात्रि सांस्कृतिक कार्यक्रम मेले का मुख्य आकर्षण रहे जिसका लोगों ने भरपुर लुत्फ उठाया है।

इन्होंने इस मेले के सफल आयोजन हेतु एसडीएम बंजार, पुलिस प्रशासन, विद्युत विभाग, ग्राम पंचायत मशियार की प्रधान शांता देवी, प्रधान ग्राम पंचायत तुंग घनश्याम सिंह, प्रधान ग्राम पंचायत शिल्ही शेत्तू देवी, महेंद्र सिंह, पूर्व उप प्रधान मशीयार प्रकाश चंद, हिमालयन ओरा के अध्यक्ष मोहन ठाकुर, ठेकेदार सेस राम , टीकम राम , ठेकेदार प्रकाश चंद, पूर्व प्रधान खूब राम, सेवानिवृत कैप्टन भगत सिंह तथा फलाचन घाटी की समस्त जनता का धन्यवाद और आभार प्रकट किया है।

मुख्य अतिथि सेवानिवृत कैप्टन भगत सिंह ने कहा कि मेले हमारी संस्कृति के प्रतीक हैं। मेले के आयोजनों से आपसी सौहार्द एवं भाईचारा बढ़ता है। मेले हमारी पुरानी सांस्कृतिक विरासत हैं। इन्होंने कहा कि मेले हमारी विशिष्ट सांस्कृतिक परंपराओं की बहुमूल्य विरासत को संरक्षित करने के साथ-साथ समाज को एकजुट करने और सामाजिक सद्भाव बनाए रखने में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं।

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