देश की स्वतंत्रता के लिए अनेक क्रांतिकारियों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इनमें से एक प्रमुख नाम बुंदेलखंड के पंडित रामसहाय तिवारी का भी ...
देश की स्वतंत्रता के लिए अनेक क्रांतिकारियों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इनमें से एक प्रमुख नाम बुंदेलखंड के पंडित रामसहाय तिवारी का भी है।
छतरपुर (मनोज सोनी): देश आज अपना 76वां गणतंत्र दिवस मना रहा है। इस स्वतंत्रता के लिए हमारे पूर्वजों ने जो बलिदान दिया, उसे कभी भुलाया नहीं जा सकता। उन्होंने जो गुलामी सहन की, उसकी कल्पना मात्र से ही आत्मा कांप उठती है। बुंदेलखंड को अंग्रेजी हुकूमत से मुक्त कराने और भारतीय संविधान के लागू होने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले पंडित राम सहाय तिवारी हमेशा राजाओं और अंग्रेजों के खिलाफ आवाज उठाते रहे। उन्हें इसके लिए कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी।
अंग्रेजों ने सुनाई 10 जूते मारने की सजा
पंडित राम सहाय तिवारी ने अंग्रेजों के खिलाफ अनेक संघर्ष किए। उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भागीदारी निभाई और अंग्रेजी सरकार को चुनौती दी। उनकी ससुराल उत्तर प्रदेश के चरखारी में थी, जहां अंग्रेजों ने उन्हें पकड़कर अपमानित करने के लिए 10 जूते मारने की सजा सुनाई।
महोबा में रामसहाय की शिक्षा
पंडित रामसहाय तिवारी का जन्म 10 जून 1902 को टहनगा के निवासी मातादीन तिवारी और कृष्णा देवी के घर हुआ। उनकी प्रारंभिक शिक्षा महोबा में संपन्न हुई। महोबा में स्वतंत्रता संग्राम की सभा में भाग लेकर पंडित रामसहाय ने अपने संघर्ष की शुरुआत की। मिडिल परीक्षा में उत्कृष्टता प्राप्त करने के बाद उन्हें अध्यापक की नौकरी मिली, लेकिन महाराजा हाई स्कूल छतरपुर से स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने के कारण उन्हें निष्कासित कर दिया गया।
चंद्रशेखर आजाद को 6 रिवॉल्वर प्रदान किए
महात्मा गांधी से प्रेरित होकर पंडित रामसहाय तिवारी ने चार आने (चवनी) में कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण की। बुंदेलखंड के इतिहासकार शंकर लाल सोनी के अनुसार, "पंडित रामसहाय तिवारी चंद्रशेखर आजाद के बुंदेलखंड आगमन के बाद क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल हुए और उन्होंने चंद्रशेखर आजाद के लिए 6 रिवॉल्वर की व्यवस्था भी की।
संविधान पर रामसहाय तिवारी ने हस्ताक्षर किए।
आजादी के पश्चात विन्ध्य प्रदेश की सीमाओं का निर्धारण किया गया और राजधानी के रूप में नौगांव के स्थान पर रीवा को चुना गया। नए विंध्य प्रदेश के प्रधानमंत्री के रूप में अवधेश प्रताप सिंह को नियुक्त किया गया। रीवा को राजधानी बनाए जाने के बाद से 1950 तक भारतीय संविधान बनाने की प्रक्रिया आरंभ हुई। इस दौरान पंडित रामसहाय तिवारी को बुंदेलखंड से संविधान सभा के सदस्य के रूप में नामित किया गया। जब 26 जनवरी 1950 को पूरे देश में संविधान लागू हुआ, तब संविधान की मूल प्रति पर हस्ताक्षर करने वाले निर्माताओं में पंडित रामसहाय तिवारी का भी नाम शामिल था, और इस प्रकार भारतीय संविधान लागू हुआ।
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