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जमीन से बेदखली के खिलाफ उपमंडल मुख्यालय आनी में गरजे किसान ,एसडीएम के माध्यम से सरकार को सौंपा ज्ञापन।

हिमाचल किसान सभा और सेब उत्पादक संघ आनी ने  इसके खिलाफ उपमंडल मुख्यालय आनी रैली निकाल कर विरोध-प्रदर्शन किया और  उपमंडल दंडाधिकारी आनी नरेश ...

हिमाचल किसान सभा और सेब उत्पादक संघ आनी ने  इसके खिलाफ उपमंडल मुख्यालय आनी रैली निकाल कर विरोध-प्रदर्शन किया और  उपमंडल दंडाधिकारी आनी नरेश वर्मा के माध्यम से सरकार को ज्ञापन सौंपा।  

 सेब उत्पादक संघ आनी के प्रधान प्रताप ठाकुर और सचिव गीता राम ने  कहा कि प्रदेश सरकार और वन विभाग की ओर से किसानों की जमीनों से गैर-कानूनी तरीके से बेदखली की जा रही है, जो सरासर गलत और किसान विरोधी है। ये बेदखली कानून के तहत निर्धारित प्रक्रिया का पालन किए बिना तथा उचित सीमांकन किए बिना आवासीय मकानों को सील किया जा रहा है यहां तक कि उन मकानों को भी नहीं बख्शा जा रहा है जो नीतोड पॉलिसी के तहत स्वीकृत भूमि पर बनाए गए है।

. हिमाचल प्रदेश विधानसभा ने वर्ष 2000 में भूमि राजस्व अधिनियम 1953 में धारा 163ए को शामिल करके संशोधन किया था। जिसके तहत 1.67.339 किसानों ने शपथ पत्र भरकर अतिक्रमित सरकारी भूमि के नियमितीकरण के लिए आवेदन किया था, जिसमें उन्होंने दावा किया था कि वे अतिक्रमित सरकारी भूमि के मालिक है इस अधिनियम के खिलाफ एक रिट याचिका हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय में लंबित है, जिस पर अभी अंतिम आदेश आना बाकी है, लेकिन इसके बावजूद भी ऐसे किसानों को पब्लिक परमिसिस एक्ट के तहत कब्ज़े वाली भूमि खाली करने के लिए नोटिस दिए जा रहे हैं।उन्होंने कहा कि पिछले दो वर्षों में प्रदेश में कई तरह की प्राकृतिक आपदााओं  के कारण बड़े पैमाने पर कृषि भूमि का नुकसान हुआ है जिससे कई किसानों के पास कोई भूमि नही बची है , यहां तक कि घर बनाने के लिए भी नहीं।


हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय में सिविल रिट पेटिशन (सीडब्ल्यूपी) पूनम गुप्ता बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य के मामले में दिसंबर 2024 में तपोवन में आयोजित हिमाचल प्रदेश विधानसभा के शीतकालीन सत्र में नियम 102 के तहत सरकारी संकल्प को अपनाने के संबंध में एक अतिरिक्त हलफनामा दाखिल किया जाए, ताकि सभी भूमिहीन और छोटे और सीमांत किसानों और उन लोगों को भी 10 बीघा तक भूमि प्रदान की जा सके जिनकी कृषि भूमि प्राकृतिक आपदा से नष्ट हो गई है, इसके लिए केंद्र सरकार से 1980 के वन संरक्षण अधिनियम में उचित संशोधन करने का अनुरोध किया जाए।

भूमिहीन एवं गरीब किसानों को कम से कम 5 बीघा कृषि भूमि दी जाए और नियमित की जाए। सभी भूमिहीन व्यक्तियों को सरकार की नीति के अनुसार ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में क्रमश दो और तीन बिस्वा भूमि प्रदान की जाए और जब तक उन्हें उपयुक्त भूमि आवंटित नहीं की जाती है, तब तक उनके आवास से बेदखल न किया जाए और 2023 की प्राकृतिक आपदा में जिनके घर नष्ट हो गए हैं, उन्हें 7 लाख रुपये प्रदान करने का विशेष पैकेज उन लोगों को भी दिया जाए जिन्होंने गैर-म्यूटेटेड नौतोड़ भूमि पर अपने घर बनाए हैं। उन्होंने मांग की है कि अभिग्रहित चौड़ाई के बाहर सड़क किनारे खाद्य पदार्थ, सब्जी और फल या इसी किस्म के अस्थायी स्टॉल लगाए जाने वालों की सभी बेदव्खलियां रोकी जाए और सरकार आने वाले बजट में एक नीति बनाए, जो आजीविका प्रदान करने के साधन के साथ-साथ राज्य के लिए राजस्व का स्रोत भी हो।

भूमि अधिग्रहण अधिनियम 2013 के अनुसार किसानों को उनकी अधिग्रहित भूमि का 4 गुणा मुआवजा दिया जाए। 2019 के बाद घटाए गए सर्कल रेट को खारिज करके अपडेट किया जाए। भूमिहीन और छोटे और सीमांत किसानों को विभिन्न योजनाओं के तहत दी गई सभी नौतोड़ भूमि का विशेष म्यूटेशन किया जाए, जिसकी किसी न किसी कारण से म्यूटेशन नहीं हो सकी।

उन भूमि कब्जाधारियों को मालिकाना हक सौंपा जाए जिन्हें खुदरा ओ दरख्तान मलकियत सरकार के रूप में वर्गीकृत किया गया है, जहां वन क्षेत्र 4 हैक्टेयर से कम है। सिरमौर में शामलात भूमि नियमों में संशोधन करके जहां 5 बीघा से कम भूमि वाले किसानों को मौजूदा पटवार सर्कल के अनुसार उपलब्ध भूमि के आधार पर ज्यादा भमि दी जाए ताकि लोगों को सामाजिक न्याय मिल सके।चकोतेदारों को मालिकाना हक देने के सभी लंबित मामलों का तुरन्त समाधान किया जाए।

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