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बुछैर में दो दिवसीय फागली मेला देवता काली नाग के सम्मान में 9 और 10 मार्च को पारंपरिक अंदाज़ में मनाया जाएगा।

  डी० पी० रावत। आनी,7 मार्च। हिमाचल प्रदेश के ज़िला कुल्लू के बाह्य सिराज क्षेत्र के तहत तहसील आनी की कोठी नारायणगढ़ फाटी बुछैर के लढ़ागी,बु...

 


डी० पी० रावत।

आनी,7 मार्च।

हिमाचल प्रदेश के ज़िला कुल्लू के बाह्य सिराज क्षेत्र के तहत तहसील आनी की कोठी नारायणगढ़ फाटी बुछैर के लढ़ागी,बुछैर,लफ़ाली, बनास और रूमाहली गांवों में 

दिवसीय फागली मेला देवता काली नाग के सम्मान में 9 और 10 मार्च को पारंपरिक अंदाज़ और देव नीति व रीति के अनुसार मनाया जाएगा। यह मेला हर तीन साल के अन्तराल बाद मनाए जाने की परम्परा है। बुछैर निवासी देस राज से प्राप्त जानकारी के अनुसार 9 मार्च को देवता काली नाग अपने देवालय से बूटीसेर जाएंगे तथा वहां रात को देव वाद्ययंत्रों की थाप पर अपने समस्त हारयानों सहित फेरा( गांव की परिक्रमा) करेंगे।


दस मार्च को देवता बूटीसेर गांव से बनास,लढ़ागी,बुछैर,लफ़ाली व रूमाहली गांवों में निश्चित क्रम में पधारेंगे। इन सभी गांवों की महिलाओं द्वारा अपने गांव में अपने पारंपरिक लिबाज़ पट्टू पहनकर ढाई फेरे की नाटी आयोजित की जाएगी। अन्त में देवता बुछैर से बूटी सेर जाकर शिखा पूजन कार्यक्रम में हिस्सा लेंगे। जबकि लढ़ागी निवासी झाबे राम के मुताबिक इसी दौरान पुरुष शूली घास से निर्मित वस्त्र धारण कर पारंपरिक मुखौटा नृत्य प्रस्तुत करेंगे। 


बताया जा रहा है कि इस दरमियान बडेढ़े (मुखौटा नृत्य करने वाले पुरुषों) द्वारा पारम्परिक लोक बोली में अश्लील बोल बोले जाते हैं।


जनश्रुति के अनुसार यह फागली मेला पहले निरमण्ड में और बुछैर में भूण्डा यज्ञ आयोजित होता था। जो कालांतर में निरमण्ड में भूण्डा यज्ञ और बुछैर में फागली मेला मनाने की परम्परा शुरू हुई।जो आजतक चलायमान है।


हिमाचल कला संस्कृति भाषा अकादमी द्वारा साल 2011 में प्रकाशित "कुल्लू देव परम्परा बाहरी सराज" पुस्तक में दिए विवरण के अनुसार उक्त देवता का पलायन बुशहैर रियासत के शुआ कौऊंरु से हुआ है।


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