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रामजीवन गुप्ता जितने अच्छे नाटककार थे उससे कहीं बेहतर इंसान थे, शोकसभा में बोले देवेन्द्र शर्मा।

अखण्ड भारत दर्पण (ABD) न्यूज पश्चिम बंगाल (प्रहलाद प्रसाद उर्फ पारो शैवलिनी की खास रिपोर्ट) चित्तरंजन : रेलनगरी के हिन्दी नाटकका...

अखण्ड भारत दर्पण (ABD) न्यूज पश्चिम बंगाल (प्रहलाद प्रसाद उर्फ पारो शैवलिनी की खास रिपोर्ट) चित्तरंजन : रेलनगरी के हिन्दी नाटककार मिहीजाम निवासी देवेन्द्र शर्मा ने कहा,रामजीवन गुप्त जितने अच्छे नाटककार थे उससे कहीं बेहतर इंसान थे वो।शर्मा ने कहा,उनके साथ मुझे 6-7 हिन्दी नाटक में काम करने का मौका मिला।अपने काम में वो किसी भी तरह का समझौता नहीं करते थे।जबतक नाटक का मंचन नहीं हो जाता था अपने कलाकारों के साथ एकदम घरेलू संबंध रखते थे।नाटक का मंचन हो जाने के बाद कलाकारों को कभी ये नहीं कहा कि तुमने बहुत बेहतर काम किया है बल्कि यह कहकर प्रोत्साहित करते थे कि और जान डालो अभिनय में तभी अपना बेस्ट दे पाओगे। ऐसे थे वो। शर्मा ने ये भी कहा कि मैं मूलत: किसी अन्य टीम से जुड़ा हुआ था। जब राम - जीवन जी को मेरी जरूरत होती थी तभी वो हमसे संपर्क करते। मेरे पास भी समय होता तभी उन्हें काम के लिए हां कहता।                
नाटककार विराज गांगुली ने कहा गुप्ता जी के साथ मेरा परिचय शर्मा जी के माध्यम से ही हुआ।बंगलाभाषी होते हुए भी हिंदी नाटक के प्रति मेरा लगाव देखकर ही उन्होंने मुझे अपने दिल में शामिल कर लिया है।हमेशा कहा करते थे लगे रहिये विराज जी।मंच को मत छोडियेगा ।यही हम कलाकारों की पहचान है।              राईटर्स कॉर्नर,चित्तरंजन के कार्यालय में आयोजित इस कार्यक्रम में महासचिव पारो शैवलिनी ने कहा, यह एक दुःख की बात है कि आज की तारीख में चित्तरंजन में हिन्दी नाटक पुरी तरह से विलुप्त हो गया है।ऐसी बात नहीं है कि अब यहाँ हिंदी के नाटककार नहीं है। लेकिन जो समर्पण की भावना होनी चाहिए वो मर चुका है। ऐसे में मैं साधुवाद देता हूँ विराज गांगुली को जिन्होंने आज भी हिन्दी नाटक को चिरेका में जिंदा रखा है। मैं भी हमेशा इसी प्रयास में लगा रहता हूँ कि चिरेका में हिन्दी नाटक को हरहाल में वेंटिलेटर पर ही सही जीवित तो रखा जाय।रामजीवन गुप्ता जी के बारे में बोलते हुए उन्होंने कहा, इंसान बेहतर अवश्य थे वो मगर अंहकारी थे।हालांकि चित्तरंजन में मैंने उनका कोई नाटक नहीं देखा।मिलने का सौभाग्य भी नहीं मिला। चुंकि,एक कवि सम्मेलन का आयोजन मैं चित्तरंजन में कर रहा था तो उनके सुपुत्र दिनेश देवघडिया को मैं अपने मंच पर लाना चाहता था। उस दौरान मुझे उनका अंहकारी रुप देखने को मिला।ये दीगर बात है कि ना तो दिनेश को मैं चित्तरंजन ला सका ना ही रामजीवन गुप्ता जी मेरे मंच पर एक कवि के रूप में आये।आज जबकि वो हमसब को छोड़कर चले गए हैं, ऐसे में इतना ही कह सकता हूँ कि चिरेका में हिन्दी नाटक को जीवन संजीवनी देते रहने का मेरा प्रयास आजीवन नहीं रामजीवन भरोसे जारी रहेगा। राईटर्स कॉर्नर के अध्यक्ष सुभाष बसु ने अपना बंगला संबोधन में कहा कि महासचिव को ईश्वर इतनी शक्ति दे कि वो अपने इस संजीवनी प्रयास में सफल हो सके।अंत में,संस्था की कोषाध्यक्ष गौरी देवी ने कहा कि किसी भी संस्था को सुचारु रुप से चलाने के लिए अर्थ की जरूरत होती है। सभी सदस्यों को इसपर ध्यान देने की जरूरत है।सदस्यों की संख्या बढाना भी जरूरी है।

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