(27 जून 2025, प्रतापगढ़) विपिन ओझा प्रदेश में 5000 सरकारी स्कूलों को मर्ज (विलय) किए जाने के फैसले के खिलाफ कांग्रेस ने शुक्रवार को ज़ोरदा...
(27 जून 2025, प्रतापगढ़)
विपिन ओझा
प्रदेश में 5000 सरकारी स्कूलों को मर्ज (विलय) किए जाने के फैसले के खिलाफ कांग्रेस ने शुक्रवार को ज़ोरदार प्रदर्शन किया। कांग्रेस पिछड़ा वर्ग विभाग के जिला अध्यक्ष राजेंद्र वर्मा के नेतृत्व में कार्यकर्ताओं ने पैदल मार्च निकालते हुए ज़िलाधिकारी कार्यालय का घेराव किया और महामहिम राज्यपाल को संबोधित ज्ञापन सौंपा।
इस मौके पर कांग्रेस जिलाध्यक्ष डॉ. नीरज त्रिपाठी ने कहा, “भाजपा सरकार शिक्षा विरोधी नीति पर काम कर रही है। गरीब, किसान, मजदूर और वंचित तबकों के बच्चों के लिए चल रहे स्कूलों को बंद करना एक सुनियोजित साजिश है, ताकि वे शिक्षा से वंचित रह जाएं।” उन्होंने आगे कहा कि सरकारें जनता के कल्याण के लिए होती हैं, लेकिन भाजपा सरकार गरीबों के बच्चों को अशिक्षित करने की साजिश रच रही है।
राजेंद्र वर्मा ने आरोप लगाया कि भाजपा सरकार का यह कदम पिछड़ा, दलित, किसान, मजदूर और अल्पसंख्यक विरोधी सोच को दर्शाता है। “शिक्षा का अधिकार छीनकर सरकार उनके भविष्य को अंधेरे में धकेलना चाहती है,” उन्होंने कहा।
कई वरिष्ठ नेता और कार्यकर्ता रहे मौजूद
प्रदर्शन में कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेताओं और कार्यकर्ताओं ने भाग लिया। प्रमुख रूप से पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष रामशिरोमणि वर्मा, पट्टी विधानसभा की पूर्व प्रत्याशी सुनीता सिंह पटेल, प्रेम सागर पाल, महेन्द्र यादव, कांग्रेस सेवादल के जिला अध्यक्ष महेंद्र शुक्ला, पिछड़ा वर्ग नगर अध्यक्ष मोहम्मद इदरीसी, लाल बहादुर पटेल, सुरेश मिश्रा, चन्द्रनाथ शुक्ला, मो. इश्तियाक, बेलाल अहमद, मो. दिलशाद, बृजेश कुमार, सरदार पटेल, विपत्ति लाल यादव, पवन विश्वकर्मा, पप्पू यादव, मजहर अली, अंजुम बानो, मो. फरीद सहित सैकड़ों कार्यकर्ता मौजूद रहे।
इस कार्यक्रम की अध्यक्षता डॉ. नीरज त्रिपाठी ने की और संचालन राजेंद्र वर्मा द्वारा किया गया।
कांग्रेस ने दी आंदोलन तेज करने की चेतावनी
कार्यक्रम के अंत में कांग्रेस नेताओं ने चेतावनी दी कि यदि सरकार ने स्कूलों को मर्ज करने का निर्णय वापस नहीं लिया, तो प्रदेशव्यापी आंदोलन किया जाएगा।
> पृष्ठभूमि
उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा हाल ही में राज्य भर के लगभग 5000 सरकारी स्कूलों को एक-दूसरे में मर्ज करने की योजना बनाई गई है। सरकार का तर्क है कि इससे शैक्षिक संसाधनों का बेहतर वितरण होगा, जबकि विपक्ष इसे शिक्षा प्रणाली के खिलाफ कदम बता रहा है।
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