Page Nav

HIDE

Grid

GRID_STYLE

Grid

GRID_STYLE

Hover Effects

TRUE

Breaking News

latest

सीटू और किसान सभा के आह्वान पर प्रदेशव्यापी हड़ताल, कामकाज पूरी तरह ठप

  मजदूर-किसान एकता की हुंकार, हिमाचल बंद के समर्थन में हजारों सड़कों पर उतरे सीटू और किसान सभा के आह्वान पर प्रदेशव्यापी हड़ताल, कामकाज पूरी...

 


मजदूर-किसान एकता की हुंकार, हिमाचल बंद के समर्थन में हजारों सड़कों पर उतरे


सीटू और किसान सभा के आह्वान पर प्रदेशव्यापी हड़ताल, कामकाज पूरी तरह ठप





केंद्र सरकार की मजदूर और किसान विरोधी नीतियों के खिलाफ मंगलवार को हिमाचल प्रदेश में व्यापक हड़ताल का आयोजन किया गया। केंद्र की मोदी सरकार द्वारा लागू किए जा रहे चार लेबर कोड, श्रम सुधारों और निजीकरण के खिलाफ संयुक्त ट्रेड यूनियनों, राष्ट्रीय फेडरेशनों एवं संयुक्त किसान मोर्चा के आह्वान पर हिमाचल प्रदेश में सीटू और हिमाचल किसान सभा के बैनर तले हजारों मजदूर और किसान सड़कों पर उतर आए।



प्रदेश के जिला व ब्लॉक मुख्यालयों में जगह-जगह रैलियां, प्रदर्शन और धरने आयोजित किए गए। शिमला में हुए मुख्य प्रदर्शन में आईजीएमसी, केएनएच, मानसिक रोगियों के अस्पताल, नगर निगम, होटल, कालीबाड़ी मंदिर, विशाल मेगामार्ट, सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट, सैहब, रेहड़ी-फड़ी, आंगनबाड़ी, मिड डे मील और गाइड यूनियनों के मजदूरों ने भाग लिया। इस दौरान कामकाज पूरी तरह से ठप रहा।


शिमला प्रदर्शन को संबोधित करते हुए सीटू प्रदेशाध्यक्ष विजेंद्र मेहरा, किसान सभा के अध्यक्ष डॉ. कुलदीप तंवर, बैंक कन्फेडरेशन संयोजक नरेंद्र ठाकुर, HPMRA नेता हुक्म शर्मा, रमाकांत मिश्रा, हिमी देवी, सत्यवान पुंडीर, टेक चंद सहित कई नेताओं ने सरकार की मजदूर विरोधी नीतियों की कड़ी आलोचना की।


प्रमुख मांगे व मुद्दे


सीटू नेताओं ने कहा कि यह हड़ताल सिर्फ अधिकारों के लिए नहीं, बल्कि मजदूर-किसान वर्ग की गरिमा और अस्तित्व के लिए है। उनकी प्रमुख मांगों में शामिल हैं:


न्यूनतम वेतन ₹26,000 प्रति माह लागू किया जाए।


मनरेगा मजदूरों को शहरी क्षेत्रों में 600 रुपये प्रतिदिन की दर से 200 दिन का रोजगार मिले।


चारों लेबर कोड व फिक्स टर्म रोजगार नीति रद्द की जाए।


सभी असंगठित व ठेका मजदूरों को नियमित किया जाए।


सार्वजनिक क्षेत्र के निजीकरण पर तुरंत रोक लगे।


सभी श्रमिकों को पेंशन व सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित की जाए।


ओपीएस (पुरानी पेंशन योजना) बहाल की जाए।


किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की कानूनी गारंटी मिले।


स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशें लागू की जाएं।


फोरलेन विस्थापितों को 80% रोजगार व उचित मुआवजा मिले।



औद्योगिक क्षेत्र से लेकर ग्रामीण भारत तक बंद का व्यापक असर


बद्दी-बरोटीवाला-नालागढ़ औद्योगिक बेल्ट से लेकर प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में भी बंद का असर दिखा। निर्माण, मनरेगा, BRO, स्वास्थ्य, होटल, ठेका और आउटसोर्स कर्मियों के साथ-साथ किसान भी देहात बंद कर रैलियों में शामिल हुए। महिला, छात्र, पेंशनर व दलित संगठनों ने भी इस आंदोलन को समर्थन दिया।


'श्रम कानूनों से बाहर हो जाएंगे 74% मजदूर'


सीटू महासचिव प्रेम गौतम ने चेताया कि यदि नए श्रम कानून लागू हुए तो 74% मजदूर श्रमिक अधिकारों से वंचित हो जाएंगे। फिक्स टर्म जॉब, ठेका व्यवस्था और काम के घंटे 8 से बढ़ाकर 12 करने की साजिश मजदूरों को बंधुआ मजदूरी की ओर धकेलेगी।


सरकार पर कड़ा हमला


नेताओं ने कहा कि मोदी सरकार देश के श्रमिकों, किसानों और गरीब वर्ग के अधिकार छीनने पर आमादा है। वेतन, पेंशन, राशन, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे मुद्दों पर सरकार की चुप्पी उसकी जनविरोधी नीयत को दर्शाती है। आंदोलनकारियों ने चेताया कि यदि सरकार ने मांगें नहीं मानीं, तो संघर्ष और तेज होगा।









No comments